समाजशास्त्र के बारे में बीरस्टीड के विचार // BIERSTEDT'S VIEWS REGARDING SOCIOLOGY

 समाजशास्त्र के बारे में बीरस्टीड के विचार 
(BIERSTEDT'S VIEWS REGARDING SOCIOLOGY)


बीरस्टीड ने समाजशास्त्र की कुछ विशेषताओं का उल्लेख किया है जो इसे अन्य विज्ञानों से भिन्न बनाती हैं। ये विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

(1) समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है न कि प्राकृतिक विज्ञान (Sociology is a Social not a natural science)- समाजशास्त्र की विषय-वस्तु अन्य विज्ञानों से भिन्न है, किन्तु अध्ययन विधि नहीं। इस आधार पर हम समाजशास्त्र को उन विज्ञानों से भिन्न कर सकते हैं जो भौतिक जगत का अध्ययन करते हैं। इस प्रकार समाजशास्त्र ज्योतिष विज्ञान, भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र, भूगर्भशाख एवं जीवशास्त्र से भिन्न है। 

(2) समाजशास्त्र वास्तविकता का अध्ययन करने वाला विज्ञान है, यह एक आदर्शात्मक विज्ञान नहीं है (Sociology is a categorical not a normative science) समाजशास्त्र 'क्या है' का अध्ययन करता है न कि 'क्या होना चाहिए' का। विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र मूल्यों की चर्चा नहीं करता, वह यह नहीं बताता कि समाज को किस दिशा में जाना चाहिए, यह सामाजिक नीति निर्धारण के लिए भी कोई सुझाव नहीं देता। इसका यह अर्थ नहीं है कि सामाजिक एवं राजनीतिक निर्णयों की दृष्टि से समाजशास्त्रीय ज्ञान व्यर्थ है वरन् इसका तात्पर्य यह है कि अकेला समाजशास्त्र ही अच्छाई और बुराई, सही एवं गलत, श्रेष्ठतम एवं निम्नतम, आदि मानवीय मूल्यों की समस्या का अध्ययन नहीं करता। यद्यपि समाजशास्त्र यह कार्य कर सकता है और करता भी है, लेकिन केवल एक विज्ञान के रूप में। समाजशास्त्र एक निश्चित समय और स्थान में निश्चित मानव समूह के मूल्यों का उल्लेख करता है, लेकिन वह यह नहीं बताता कि उस समूह को इन मूल्यों को अपनाना चाहिए। इसी आधार पर समाजशास्त्र सामाजिक एवं राजनीतिक दर्शन, नीतिशास्त्र एवं धर्म से भिन्न है।

(3) समाजशास्त्र एक विशुद्ध विज्ञान है न कि व्यावहारिक विज्ञान (Sociology is a pure Science, not an applied Science) समाजशास्त्र का उद्देश्य मानव समाज के बारे में ज्ञान प्राप्त करना है न कि उस ज्ञान का उपयोग करना। जिस प्रकार से भौतिकशास्त्र पुल का निर्माण नहीं करता, रसायनशास्त्र बीमार को दवाएं नहीं लिखता, उसी प्रकार से समाजशास्त्र भी लोकनीति तय नहीं करता, विधायकों को यह नहीं कहता कि कौन से कानूनों का निर्माण करना चाहिए और कौन से का नहीं, बीमार, अपंग-अपाहिज, वाल अपराधी व गरीब को किसी प्रकार की सहायता देनी चाहिए अथवा नहीं। विशुद्ध विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र तो केवल ज्ञान का ही संचय करता है जो प्रशासक, विधायक, कूटनीतिज्ञ, अध्यापक, फोरमेन, सुपरवाइजर, सामाजिक कार्यकर्ता और साधारण नागरिक के लिए लाभदायक हो सकता है, किन्तु समाजशास्त्रियों का यह कार्य नहीं है कि वे यह बताएं कि समाजशास्त्रीय ज्ञान का व्यावहारिक प्रयोग कैसे किया जाए।

(4) समाजशास्त्र एक अमूर्त विज्ञान है न कि मूर्त विज्ञान (Sociology is an abstract Science, not a Concrete one) समाजशास्त्र एक अमूर्त विज्ञान है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि यह अनावश्यक रूप से जटिल एवं कठिन है। इसका अर्थ तो केवल यह है कि समाजशास्त्र मानवीय घटनाओं के स्वरूपों एवं प्रतिमानों में रुचि रखता है, न कि उनके मूर्त प्रदर्शन में। समाजशास्त्र इतिहास की तरह किसी विशिष्ट युद्ध एवं क्रान्ति का अध्ययन नहीं करता वरन् युद्ध एवं क्रान्ति का सामाजिक प्रघटना के रूप में सामान्य अध्ययन करता है। यह इसका अध्ययन एक प्रक्रिया एवं सामाजिक संघर्ष के रूप में करता है। समाजशास्त्र किस विशिष्ट सामाजिक संगठन जैसे रोटरी इण्टरनेशनल, संयुक्त राष्ट्र संघ, अहमदाबाद कपड़ा मिल मजदूर संघा आदि में रुचि नहीं रखता वरन् इसमें रुचि रखता है कि मानव अपने हितों की पूर्ति के लिए किस प्रका का संगठन बनाता है तथा इन संगठनों एवं अन्य प्रकार के सामाजिक समूहों में क्या सम्बन्ध है?

(5) यह सामान्यीकरण करने वाला विज्ञान है (It is a Generalising Science) यह किसी विशिष्ट कानून, समाज, व्यक्ति व घटना का अध्ययन न कर सामान्य घटनाओं का अध्ययन करता है। यह मानवीय अन्तःक्रियाओं, समितियों, समूहों एवं समाजों की प्रकृति, संरचना, स्वरूप एवं अन्तर्वस्तु के सामान्य नियमों एवं सिद्धान्तों में रुचि रखता है। इतिहास की तरह यह किसी विशिष्ट समाज या घटना के विस्तृत एवं पूर्ण वर्णन में रुचि नहीं रखता। यह इस बात का अध्ययन नहीं करता कि हिटलर, मुसोलिनी या नेपोलियन ने क्यों, कहां और कब युद्ध किया बरन् इसकी रुचि इस बात में है कि जब किसी समूह पर बाह्य आक्रमण होता है तो उसकी आन्तरिक दृढ़ता कैसे कायम होती है?


(6) समाजशास्त्र एक तार्किक एवं अनुभवसिद्ध दोनों ही विज्ञान है (Sociology is both a Rational and an Empirical Science) - समाजशास्त्र में वैज्ञानिक पद्धति द्वारा ज्ञान का अर्जन किया जाता है। मानवीय अनुभव एवं तर्क दोनों का ही इस विज्ञान में उपयोग होता है।


(7) समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है न कि विशिष्ट विज्ञान (Sociology is a General Science, not a Special Science) समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है न कि विशिष्ट, यद्यपि यह बात समाजशास्त्रियों में आज भी विवादास्पद है। सामान्य विज्ञान होने के नाते समाजशास्त्र सभी समाजों में पाए जाने वाले सामाजिक सम्बन्धों एवं सामाजिक क्रिया का अध्ययन करता है। मानव के धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, वैधानिक, आदि सभी व्यवहारों में सामाजिक सम्बन्ध एवं सामाजिक क्रियाएं विद्यमान होती हैं, अतः समाजशास्त्र उनका अध्ययन करता है। दूसरे शब्दों में समाजशास्त्र उन प्रघटनाओं एवं तथ्यों का अध्ययन करता है जो सभी मानवीय अन्तःक्रियाओं में पाए जाते हैं।


इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि समाजशास्त्र एक वास्तविक, विशुद्ध, अमूर्त, सामान्यीकरण करने वाला, तार्किक एवं अनुभव-सिद्ध तथा सामान्य विज्ञान है

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